Letter to Pihu

Days without address

४ साल की बच्ची से क्या क्या बात की जा सकती है ?

धुंध में से उठती धुंध के बारे में बात नहीं की जा सकती, किताबे जो में पढ़ रहा हु उसके बारे में बात नहीं की जा सकती, पहाड़ो में जीना केसा लगता हे वो नहीं पूछा जा सकता ।     

खेलने के बारे में बात की जा सकती हे ....
चिड़िया के उड़ने के बारे में बात की जा सकती हे...
मम्मी-पाप्पा का नाम पूछा जा सकता हे...
उसको दुविधा में डाला जा सकता हे की “चलो बताओ मम्मी ज्यादा पसंद हे या पापा ?”
या उसका सबसे पसंदीदा खिलौना कोनसा हे उसके ऊपर भी बात हो सकती हे।

पर ये सब न पूछ कर में खेलने देता हु बच्चो को मेरे आसपास। और फिर अपने झोले मे से तरह तरह के नए सवाल सामने रखता हु जैसे की “आज आप कितने बजे उठे ?” “पिछली बार घूमने कब गए थे ?” “जरा बताओ की सुबह पसंद हे की शाम ?”

तरह तरह के सवालो में से किसी भी प्रश्न का कोई भी जवाब देने की पूरी आज़ादी होती है।

ये सब सवाल जवाब के सील सिले के बिच ही में खिलोने बादलो के बिच छिपा देता हु और फिर चाय पिने का नाटक करने लगता हु।

अब खिलोने से ज्यादा खिलोना ढूँढना नया खेल बन जाता है। और ये नया खेल में एक दम सही समय पे समाप्त कर देता हु। “क्युकी आँखे गीली भी नहीं होनी चाहिए और हंसी भी दुगनी होनी चाहिए।”

Pihu loves to eat ‘golgappa’ actually we both love. we are not happy about the fact that ‘golgappa’ is not considerd as a staple food.

“ आज sunday हो गया क्या ?”

“आज गोलगप्पा वाला आएगा ना ?”