Irani Cafe

Days without address

//"शुरुआत थका देने वाली होती है। सबकुछ बिखरा सा और बिलकुल विपरीत लगता है। शुरुआती दिनों में दर्ज करना बड़ा मुश्किल है, में बस जैसा तैसा ठीक ठाक सा दर्ज करके ही आगे बढ़ सकता हु। चारो तरफ रोशनी होने पर भी किसी एक रोशन दान की कमी महसूस होती रहती है।

बहुत से सवाल के साथ ज्यादातर दिन खुद को अंदर से तोड़ देने वाले गुजरते है। कुछ भी नया नहीं घटता और एक ही विचार आसपास गोल-गोल घूमता है जिसे में ठीक ठाक दर्ज करने के भरसक प्रयास में पोटली बन कर बैठा रहता हु।

आप पागलों की तरह छलांग लगाना चाहते हो जब की जानते हो छलांग लगाना खाए में कूदने जैसा है। और मूल बात भी यही हे की आप हर बार किसी का सहारा नहीं ले सकते कुछ निजी पल आपको खुद को ही काटने पड़ते है। आप रेंगने के अलावा कुछ ज्यादा नहीं कर सकते।
और आखिर में लेखन और है भी क्या '1' से रेंगते-रेंगते शुरू कर के 'शून्य' हो जाने तक का सफर।

तभी एक मक्खी भिनभिना ने लगी मेरे चाय के कप पर में रुका और देखने लगा उस कुत्ते को जो cafe मे आते वक्त मेरा पैर चाट रहा था"